प्रस्तावाना |
श्री लक्ष्मीकेशव आरती |
।। श्री लक्ष्मीकेशव प्रसन्न ।।
श्री लक्ष्मीकेशव आरती
(चाल- जयजय दिनदयाळा सत्यनारायण देवा )
जय जय लक्ष्मीकेशव मम कुल स्वामीन् प्रभो विष्णू
पंचारती तुज ओवाळीतसे लक्ष्मीपती विष्णू ।। धृ.।।
मुकुट कसा हा शोभतसे तव रत्नखचित मस्ती
तशीच शोभे गदा चक्रधर पद्मचतुरहस्ती
नेत्र चमकती अतीच जैसे चंद्रसूर्य वियुती
तव सुंदर मुख पाहून वाटे उपमा नचजगती ।। १ ।। जय जय
कंठी कशी ही शोभत असे तव वैजयंतीमाळा
तशीच जवळी विलसे अतीही क्षीरोदधीबाळा
हस्ती शोभती कनककेजीरी भक्तपूर्ण कामा
कटीतटी विलसे विकुल अती हे नवमेघशामा।। २ ।। जय जय
कंठी यज्ञोपवित शोभे तव विश्वारामा
भाळी मृगपद कर्णीकुंडले झळकती सुखधामा
श्रीवत्सांका हृदयी धरुनी भक्तपादकमला
दावीसी सकला भक्तांवरीते प्रेमविश्वपाळा ।। ३ ।। जय जय
तवपदकमलापासूनी वाहत आहे ही गंगा
हिच्या दर्शने निघती नेत्रा दोन्ही प्रेमगंगा
ही स्नानाने पवित्र करीते अधःशुनी मुनीअंगा
मज वाटतसे हिजहुनी नाही अधिक काशी गंगा ।। ४ ।। जय जय
कोळीसरेग्रामी एकांतस्थली करीसी तू रहिवास
जे का येती दर्शन तव चरणीचे दास
त्याते देसी मोक्षादीक पद पुरवून मनीची आस
लक्ष्मीकेशव म्हणता चुकती भवाब्दीचे बहु त्रास ।। ५ ।। जय जय
पाहियेल्या मी आजवरी बहु नानाविध मूर्ती
परि त्यामध्ये नाही ऐशी दैदिप्य स्फूर्ती
म्हणूनी दास विष्णू तत्पदी भावे करी विनती
हीच मूर्ती लक्ष्मीकेशव राहो मम चित्ती ।। ६ ।। जय जय
।। श्री लक्ष्मी केशवाष्ट्यम ।। |
यो धत्ते कमलं कम्बू | हस्ते चक्रं गदामपि । | |
तं लक्ष्मी – भू – युतं वन्दे | लक्ष्मी केशव दैवतम् ।। १ ।। | |
पुरा कोळीसरे ग्रामें | स्थापितं कुलपूर्वजै: । | |
तं लक्ष्मी केशव वन्दे | लक्ष्मीकेशव कुलदैवतम् ।। २ ।। | |
मयातीतं परं ब्रह्मा | सर्वशक्तीसमन्वितम् | |
वन्दे तं सच्चिदानन्दं | निर्गुणं च गुणान्वितम् ।। ३ ।। | |
अनन्तनाम रुपाख्यं | सगुणं विश्वरुपकम् । | |
तं लक्ष्मीकेशवं वन्दे | वासुदेव सनातनम् ।। ४ ।। | |
केवल भक्ती संतुष्टं | भक्तानां हदिसंस्थितम् । | |
भक्तेच्छापूरकं वन्दे | राधिकापुरुषोत्तमम् ।। ५ ।। | |
आत्मभावं नयन्तं तं | मायापाश विमोचकम् । | |
वन्दे तं परमात्मनं | श्री गोपीजनवल्लभम् ।। ६ ।। | |
तापत्रयं च हर्तरं | चिन्ताशोकनिवारकम् । | |
कलौ पापमलापघ्नं | वन्दे श्रीविश्वपालकम् ।। ७ ।। | |
वन्दे देवाधीदेवेशं | सर्वदैव: सुपूजितम् । | |
तं लक्ष्मीकेशव वन्दे | पुरुषं कृष्णापिङ्गगलम् ।। ८ ।। | |
अष्टकं कीर्तनीयंच | सर्वार्थफलदायकम् । | |
कुलदेव प्रसादेन | सर्वे विन्दन्तु वांच्छितम् ।। ९ ।। | |
विनायकृतं स्त्रोतं | भक्तिभाव विवर्धकम् । | |
इदं स्रोतं कुलजातेन | कुलदेवसमर्पितम् ।। १० ।। |
कोकणभूमीचा स्वामी - भगवान श्री परशुराम |
भगवान परशुराम वंशवृक्ष |
कुलगुरू - शांडिल्य |
गोत्र व प्रवर |
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प्रवर्तक ऋषी |
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गोत्र |
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१ |
काश्यप |
१ |
काश्यप |
२ |
शांडिल्य |
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२ |
भारद्वाज |
३ |
कपि |
४ |
गार्ग्य |
५ |
भारद्वाज |
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३ |
वासिष्ठ |
६ |
वासिष्ठ |
७ |
कौंडिण्य |
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४ |
विश्वामित्र |
८ |
कौशिक |
९ |
बाभ्रव्य |
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५ |
भृगु |
१० |
जामदग्न्य |
११ |
वत्स |
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६ |
आंगिरस |
१२ |
विष्णुवृद्ध |
१३ |
नित्युदन |
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७ |
अत्रि |
१४ |
अत्रि |
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गोत्र, प्रवर,वेद , शाखा ,सूत्र |
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काणे |
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गोत्र - |
शांडिल्य |